उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक लाने की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, और सोमवार को उत्तराखंड विधानसभा में इस बिल को पेश करने को लेकर खूब सियासी ड्रामा हुआ। विधानसभा कार्यमंत्रणा समिति की बैठक के दौरान सभापति ऋतु खंडूरी ने जैसे ही विधेयक पेश करने की घोषणा की, कांग्रेस की ओर से आपत्ति दर्ज करायी गई। विपक्ष ने प्रश्नकाल और शून्यकाल को स्थगित करने के विरोध में बैठक का बहिष्कार किया। इसके साथ ही, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और विधायक प्रीतम सिंह ने कार्यमंत्रणा समिति से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना लिखित इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को भेजा। विधानसभा में पेश होने से पहले ही, यूसीसी बिल की तुलना गोवा में लागू समान नागरिक संहिता से होने लगी है।
सभी के लिए समान अधिकार प्रस्तावित
यह दावा किया जा रहा है कि उत्तराखंड का प्रस्तावित समान नागरिक संहिता विधेयक, जो गोवा में 157 साल पहले बने कानून से बेहतर है, क्योंकि गोवा में कैथोलिक ईसाइयों और अन्य समुदायों के लिए अलग-अलग नियम हैं, जबकि उत्तराखंड के यूसीसी में सभी के लिए समान अधिकार प्रस्तावित किया गया है। उत्तराखंड के प्रस्तावित समान नागरिक संहिता विधेयक में, समान अधिकारों के प्रावधान को सभी नागरिकों के लिए समान रूप से और विस्तृत ढंग से प्रस्तावित किया गया है, जो इसे गोवा के नियमों से अलग बनाता है।
उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी के मसौदे को तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति ने गोवा के समान नागरिक संहिता का गहन अध्ययन किया, और इसके सभी कानूनी पहलुओं का आकलन किया। इसके बाद ही समिति ने अपनी रिपोर्ट में उत्तराखंड के लिए सिफारिशें की हैं।
उत्तराखंड यूसीसी के मुख्य प्रावधान
महिलाओं को पुरुषों के समान संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है।
विवाह पंजीकरण सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है।
पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी संभव नहीं है।
सभी समुदाय की लड़कियों की शादी की उम्र एक समान रखी जाएगी।
लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए डिक्लेरेशन जरूरी है।
जायज और नाजायज बच्चों के बीच भेदभाव खत्म हो जायेगा।
बुजुर्गों की देखभाल और भरण-पोषण के लिए भी प्रावधान किया गया है।
गोवा यूसीसी के मुख्य प्रावधान
संपत्ति या अर्जित भूमि पर समान अधिकार पति-पत्नी को प्रदान किया गया है।
तलाक की स्थिति में पत्नी को संपत्ति का आधा हिस्सा पाने का अधिकार है।
माता-पिता अपने बच्चों को विरासत से बेदखल नहीं कर सकते।
पंजीकृत मुस्लिम पुरुषों को बहुविवाह नहीं करने की संविदा है और मौखिक तलाक का कोई प्रावधान नहीं है।
हिंदू पुरुष दूसरी शादी कर सकते हैं अगर पहली पत्नी से बच्चा नहीं होता है।
चर्च में शादी करने वाले कैथोलिकों को यूसीसी तलाक से बाहर रखा गया है।
अन्य समुदायों के लिए विवाह का केवल नागरिक पंजीकरण ही प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
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