पल्लवी पटेल का राज्यसभा चुनाव में सपा उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान न करने का ऐलान ने सपा के लिए कठिनाईयों का सामना कराया है। पहले, उन्होंने आरएलडी के साथ छोड़ दिया, जिससे सपा को उसकी समर्थन और संगठनात्मक ताकत में कमी हुई। अब, उनके मतदान के इनकार से सपा को 10 राज्यसभा सीटों के लिए मतदान में उसकी तीसरी फंस का सामना करना पड़ रहा है। यह चुनावी प्रक्रिया में सपा के लिए एक महत्वपूर्ण मोर्चा है, क्योंकि यह उनकी राज्यसभा में प्रतिनिधित्व को प्रभावित कर सकता है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ ही सियासत की तस्वीर में बदलाव आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का प्रभाव बढ़ रहा है, जबकि विपक्षी दलों को झटके पर झटके लग रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को हराकर एनडीए का पक्ष बढ़ाया है। इसके परिणामस्वरूप, सपा के भीतर भी सियासी घमासान देखने को मिल रहा है। जयंत चौधरी के इस कदम से सपा में भी विवाद प्रारंभ हो रहा है।
स्वामी ने अपने तरीके से पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए प्रयास किया, लेकिन उनके बयानों से असहमति जताने वालों को छूटभैया नेता भी बता दिया। वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठाया और अपने बयानों को निजी बताने के लिए भी नाराजगी जताई। स्वामी ने अपने साथ व्यवहार को भेदभावपूर्ण और राष्ट्रीय महासचिव के पद को महत्वहीन भी बता दिया। उनके इस्तीफे का मायना यह है कि उन्होंने विधानसभा में सपा की सीटों के बढ़ने का क्रेडिट लिया, जनसंख्या बढ़ाने के प्रयास किए और अपने बयानों को निजी बताने के लिए भेदभावपूर्ण और नेतृत्व की चुष्यों पर नाराजगी जताई। उन्होंने पीडीए को लेकर प्रतिबद्धता की नसीहत भी दी।
Discover more from The Bharat 24 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.