सहारनपुर के गोटेश्वर महादेव मंदिर में हाल ही में एक प्राचीन कुएं की खुदाई के दौरान मूर्तियां और शिलालेख मिले हैं। यह कुआँ करीबन 300 साल पुराना है। खुदाई के दौरान एक विशेष आकर्षण मिला है, जो है – एक भारी वजन का एक पुराना शंख।
सहारनपुर के मंडी समिति रोड पर स्थित गोटेश्वर महादेव मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुएं की खुदाई के दौरान मूर्तियां और शिलालेख निकले हैं। कुएं से करीब 300 साल पुराना एक शंख भी मिला है, जो काफी वजनी है। इस शंख का विशेषता से यह है कि यह अब भी बज रहा है। वर्तमान में, इन सभी खोजों को अच्छे से साफ करके रखा जा रहा है। इस कुएं को और खोदने की तैयारी है, और उम्मीद है कि इसके अंदर से और भी प्राचीन मूर्तियां निकल सकती हैं
मंदिर के कुएं से प्राचीन मूर्तियों के निकलने की सूचना के बाद, स्थानीय लोगों के संघर्ष और प्रशासनिक कदमों के साथ, प्रशासन ने खुदाई बंद करवाई और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को जानकारी दी। इस मामले की गहराई में जानकारी के लिए उच्च अधिकारियों को सूचित किया गया है।
जब मंदिर के कुएं से निकलने लगीं मूर्तियां
बीते दिनों, मंदिर की साफ-सफाई के दौरान प्राचीन कुएं की भी खोज की गई। खुदाई के दौरान, कुछ खंडित मूर्तियां और शिलालेख मिले, जो काफी पुरानी और महत्वपूर्ण लग रही थीं। इस काम के दौरान, लोगों ने एक 300 साल पुराने शंख को भी खोजा। यह शंख अभी भी सुरीले ध्वनियों में बज रहा है और इसका वजन भी काफी भारी है।
मंदिर के पदाधिकारियों ने क्या बताया?
मामले में सिद्ध पीठ गोटेश्वर महादेव मंदिर के महामंत्री और अध्यक्ष ने बताया कि इस मंदिर को चारों तरफ से बंद करके आसपास के लोगों ने कब्जा कर रखा था। 2020 में जिलाधिकारी द्वारा इसका कब्जा हटाकर, रास्ता बनवाया गया और यहां के कुछ व्यापारियों के हाथ में इसे सौंप दिया गया ताकि पूजा अर्चना शुरू कर सकें।
उसके बाद, यहां पर एक कमेटी बनाई गई, जिसमें मैं महामंत्री हूं। लगभग 3 साल से हम इसकी साफ-सफाई और मेंटेनेस के साथ पूजा अर्चना भी कर रहे हैं। मंदिर के बाहर मराठा कालीन में बने हुए कुएं को देखकर हमारे संगठन की टीम ने यह सोचा कि इसमें पानी जरूर होगा, इसलिए इसकी खुदाई करवाई।
मराठा काल में, कुएं की खुदाई के दौरान अनेक प्राचीन मूर्तियां उजागर होने लगीं। खुदाई के बाद, अंदर से धीरे-धीरे एक गुप्त द्वार भी खुला, जो कि अंडरग्राउंड मंदिर के रास्ते को दर्शाता था। इस मंदिर को महत्वपूर्ण स्थान माना जाता था जहां पुजारी चोरी और डाकूओं से बचने के लिए अपने आप को सुरक्षित महसूस करते थे। इस गुप्त स्थान का खुलना मराठा इतिहास के अत्यंत महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक था, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को संजीवनी देने के लिए मददगार साबित हुआ।
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