साजिश का खुलासा:
नीमच के शराब और प्रॉपर्टी कारोबारी अशोक अरोरा की हत्या के मामले में गहरी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। राकेश अरोरा और मुख्य आरोपी बाबू सिंधी ने इस हत्या की सुपारी 2 करोड़ रुपए में दी थी। राकेश अरोरा को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिससे इस मामले की जांच में आगे कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इस घटना के पीछे की साजिश का पर्दाफाश होते ही समाज में बड़ी चौंकाने वाली गतिविधियाँ हो रही हैं।
अशोक और राकेश के बीच प्रॉपर्टी का विवाद उनके परे कारोबार के मुद्दे पर आधारित था। वे सालों तक साथ मिलकर कारोबार करते रहे, लेकिन प्रॉपर्टी के मामले में असमंजस उत्पन्न हो गया। यह स्पष्ट है कि उनके बीच की दोस्ती और साझेदारी का अंत विवाद के कारण हुआ।
अशोक अरोरा और राकेश के बीच प्रॉपर्टी के विवाद की मूल कहानी यह है कि अशोक अपने बेटे को अपने शराब और प्रॉपर्टी के पूरे कारोबार का आधिकारिक उत्तरदाता बनाना चाहते थे, जबकि राकेश अपने बेटे को उसी कारोबार का अधिकारी बनाना चाहते थे। इस विवाद ने उनके बीच संघर्ष का केंद्र बना दिया था, जिसमें प्रॉपर्टी के संपत्तिकरण, वित्तीय व्यवस्था, और कारोबारी निर्णयों का महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस विवाद ने न केवल दोनों परिवारों के बीच विचारशीलता को बाधित किया बल्कि उनके बीच व्यापारिक संबंधों पर भी गहरा असर डाला।
90 के दशक में अरोरा परिवार ने नीमच मंदसौर में पैर जमाए
कश्मीरी लाल और राकेश के पिता श्री अरोरा ने राजस्थान के गंगानगर में 90 के दशक में दूध का कारोबार शुरू किया। उन्हें नीमच में अजीत जायसवाल से मिलकर शराब के ठेके का व्यापार करने का विचार आया। दोनों ने मिलकर इस व्यापार में प्रवेश किया, और उनका धंधा सफलतापूर्वक चलने लगा। इस साझेदारी के जरिए वे अपने कारोबार को विस्तारित करते हुए धीरे-धीरे अपना वर्चस्व बढ़ाया। उन्होंने पैसे कमाकर अपने परिवार को सुखी और समृद्ध जीवन देने के लिए काफी प्रयास किए।
अजीत जायसवाल के वारिस की अभाव के कारण, कारोबार की कमान कश्मीरी लाल अरोरा के हाथ में चली गई। उनकी मृत्यु के बाद, उनके पांच बेटों में से दो, अशोक और राकेश, ने अजीत जायसवाल के साथ मिलकर शराब के कारोबार को संभाला। इसके साथ ही, दोनों ने प्रॉपर्टी का व्यापार भी शुरू किया।
एक समय की बात है, नीमच में एक ऐसा ग्रुप था जिसने एक अद्वितीय धाक जमाई थी। इस धाक को टोड़ने के लिए नीमच के अन्य किसी ग्रुप के पास कोई और विकल्प नहीं था। यह ग्रुप गंगानगर से जुड़ाव रखता था, इसलिए उसे “गंगानगर” नाम दिया गया।
गंगानगर ग्रुप को चांडक ग्रुप से मिली चुनौती
90 के दशक में गंगानगर ग्रुप को राजस्थान के चांडक ग्रुप से चुनौती मिली थी। इस ग्रुप ने नीमच, मंदसौर और सीमावर्ती राजस्थान के जिलों में शराब ठेकों पर वर्चस्व कायम कर लिया था। नीमच के स्थानीय लोगों के मुताबिक चांडक ग्रुप से जुड़े लोगों ने उस दौर में आतंक फैलाया। जब लोग काफी परेशान हो गए तो स्थानीय लोगों ने चांडक ग्रुप की दुकानों पर हमला किया।
इस घटना को दर्ज करते हुए, गंगानगर और चांडक ग्रुप के बीच आमने-सामने की स्थिति के कारण सामाजिक और राजनीतिक असमंजस बढ़ गया। यह घटना शराब ठेकों के ठेकेदारों के बीच संघर्ष को भी प्रकट करती है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय आम जनता पर दबाव बढ़ा और उन्होंने अपने अहितकारी परिस्थितियों के खिलाफ प्रतिक्रिया दिखाई।
चांडक ग्रुप ने लोगों के विरोध को देखते हुए अपना कारोबार समेटने का निर्णय लिया। इसके परिणामस्वरूप, गंगानगर ग्रुप ने शराब के ठेके लेने का निर्णय लिया। शराब के कारोबार में अब गंगानगर ग्रुप का एकतरफा राज है।
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