इसका अर्थ है कि राजनीतिक दलों द्वारा इनकैश किए गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी एसबीआई को प्रस्तुत की जानी चाहिए। यह बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा उपचुनावों और चुनावों के समय निकाले जाते हैं। साथ ही, जिन इलेक्टोरल बॉन्ड की राशि इनकैश नहीं की गई है, उन्हें खरीदार के खाते में वापस करना होगा। इसका मतलब है कि यह राशि चुनावी बॉन्ड के उपयोग से होनी चाहिए और इसे खर्च किए जाने वाले स्थानीय या राष्ट्रीय चुनावी उम्मीदवारों को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार दिया और इसकी वैधता को रद्द कर दिया। उन्होंने अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता को भी उल्लंघन माना और यह बताया कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि चुनावी बॉन्ड ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने का एकमात्र तरीका नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड की बिक्री बंद करने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को देना होगा। इस निर्देश के अनुसार, एसबीआई को 5 साल पहले इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम शुरू होने के बाद से किस पार्टी को कितने चुनार्व बॉन्ड जारी किए हैं, इसकी जानकारी मुहैया करानी होगी।
शीर्ष अदालत ने एसबीआई को चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने के निर्देश दिए हैं। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे। एसबीआई को राजनीतिक दलों द्वारा इनकैश कराए गए चुनावी बॉन्ड का विवरण भी प्रस्तुत करना होगा। इसके तहत, सीबीआई को इन बॉन्डों के आरोपियों और उनके संबंधित राजनीतिक दलों के साथ संबंधित जानकारी प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी होगी। इसके साथ ही, यह विवरण उन गतिविधियों का भी विवरण प्रदान करेगा जिनका उपयोग बॉन्डों के इनकैशमेंट में किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से कॉर्पोरेट दानदाताओं की राजनीतिक दान देने की प्रक्रिया को खुला बनाए रखा जाना चाहिए। इस निर्देश का मुख्य उद्देश्य है कि कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चुनावी चंदे का स्रोत साफ़ हो, ताकि ‘लाभ के बदले लाभ’ की संभावना पर आधारित गतिविधियों को रोका जा सके।
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