पुण्य सलिला मां नर्मदा जी के प्राकट्योत्सव के पावन अवसर पर आज जबलपुर में कई भव्य कार्यक्रम होंगे। जगह-जगह मां नर्मदा की प्रतिमा रखी गई है। कई स्थानों पर भंडारे भी होंगे। मां नर्मदा जयंती पर लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह स्वामी गिरीशानंद सरस्वती जी के साथ चुनरी यात्रा में शामिल होंगे। इस दौरान मां नर्मदा को 1100 फीट लंबी चुनरी भी अर्पित की जाएगी।
राकेश सिंह सुबह 11.30 बजे नर्मदा पूजन करेंगे। इसके उपरांत, दोपहर 12 बजे उमाघाट में 1100 फीट लंबी चनरी मां नर्मदा को अर्पित करेंगे। दापहर 12 बजे, उमाघाट में, 100 फूट लंबी चुनरी सहित, मां नर्मदा को समर्पित किया जाएगा। इस अवसर पर, नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी गौरीघाट पहुंच सकते हैं ताकि वे नर्मदा जयंती के उत्सव का उद्घाटन कर सकें।
जाने मां नर्मदा का इतिहास
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम…
द्विषत्सु पाप जात जात करि वारि संयुतम…
कृतान्त दूत काल भूत भीति हरि वर्मदे…
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।
नर्मदा मां नदी केवल एक जलस्रोत ही नहीं, बल्कि वह हमें कंकर-कंकर में भगवान शंकर का रूप दिखाती है। उनके पावन तट पर आद्य जगतगुरु शंकराचार्य जी की रचनाओं से हमें सनातन संस्कृति की दिशा मिलती है। यह नदी अन्नदाताओं को समृद्धि प्रदान करती है और उनकी खुशहाली के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। स्नान के माध्यम से इस नदी से पुण्य प्राप्ति का मान्यतावाद है, और इसके दर्शन से अधिक पुण्य मिलता है। इसकी छल-छल धारा हमें जीवन, समृद्धि और खुशहाली की दिशा में निरंतर प्रेरित करती है।
मां नर्मदा का आदर्श हमें साथ लेकर चलने की प्रेरणा देता है। उनकी सहायक नदियों को समाहित करती दृष्टि से हमें समाज में एकता और सहयोग की महत्ता को समझाती है। जब हम मां नर्मदा की तरह साथ देकर सृजन के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, तो समाज के हर वर्ग का सामूहिक योगदान आता है।
मां नर्मदा की प्रवाहमान यात्रा अमरकंटक उद्गम कुंड से शुरू होती है और विन्ध्य व सतपुड़ा के पहाड़ों और जंगलों को पार करते हुए ओंकारेश्वर से गुजरते हुए खम्भात की खाड़ी तक जाती है। इस यात्रा का अनुमानित लंबाई 1,312 किलोमीटर है। यह यात्रा लोक कल्याण, सतत परिश्रम और समर्पण का संदेश देती है। मां नर्मदा ने प्रकृति, मानव सभ्यता और मध्य प्रदेश को अतुल्य देशीय धन दिया है। इसके साथ ही, नर्मदा घाटी में प्राचीन नगरों का विकास और समृद्धि के प्रतिमान स्थापित किए गए हैं, जैसे महिष्मती (महेश्वर), नेमावर, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर, भीमबैठका आदि। यहां प्राचीन उत्खननों में 2200 वर्ष पुराने प्रमाण मिले हैं।
मां नर्मदा की सेवा के लिए, हमें उसके जल को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए दूषित पदार्थों को नदी तक पहुंचने से रोकना होगा। धार्मिक आस्था के नाम पर किसी भी अनुपयोगी वस्तु को नदी में प्रवाहित नहीं करना चाहिए। नदी पहाड़ों और जंगलों में विशाल वृक्षों के जड़ों में संचित जल के माध्यम से पल्लवित है, इसलिए हमें अधिक से अधिक पौधारोपण करना चाहिए। यह सेवा ही मां नर्मदा के प्रति कृतज्ञता के लिए पर्याप्त है।
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