चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में हुई बड़ी गिरावट ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है। बीते साल 2023 में एफडीआई के आंकड़े साल 1993 के बाद सबसे कम दर्जे गए हैं, जिससे चीन के विदेशी निवेश में धीमी गति का संकेत मिलता है। इसके विपरीत, जापान ने हाल ही में अपनी तीसरी बड़ी इकोनॉमी का तमगा खोने की सूचना दी है, जो आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय विपणन में उसकी दुर्बलताओं को दर्शाता है।
चीन की आर्थिक स्थिति में गिरावट और विदेशी निवेश में कमी के संकेत सार्वजनिक स्तर पर व्यापक चिंता का कारण बन रहे हैं। यह मुख्य रूप से चीनी अर्थव्यवस्था की रूपरेखा के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए महत्वपूर्ण है। इस विकृति के बावजूद, भारत को एक महत्वपूर्ण अवसर मिल सकता है।
निवेश का ध्यान: चीन में विदेशी निवेश में गिरावट के कारण, भारत को निवेशकों को आकर्षित करने का अवसर मिल सकता है। भारतीय सरकार को अपनी नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिए सुविधाओं को और अधिक सुखद बनाने की आवश्यकता है।
उत्पादन का बढ़ता योगदान: चीन के उत्पादन में गिरावट के कारण, भारत उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने का अवसर प्राप्त कर सकता है। यह भारतीय उत्पादन सेक्टर को अधिक सुदृढ़ और प्रभावी बनाने का माध्यम बना सकता है।
व्यापारिक गतिविधियों की विस्तार: चीनी बाजार के लिए एक प्रमुख आपूर्ति बंद होने के कारण, भारतीय उत्पादकों को अधिक अवसर मिल सकते हैं। वे अपनी उत्पादों को चीनी बाजार में प्रसारित करने के लिए एक नई दिशा में ध्यान दे सकते हैं।
नौकरियों का विकास: चीनी अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण, भारत में नौकरियों का विकास का अवसर हो सकता है। उद्योगों और व्यापारिक क्षेत्रों में नए प्रोजेक्ट्स और निवेश के साथ, नौकरियों का बाजार विस्तारित हो सकता है।
इन सभी संकेतों के साथ, भारत को एक मौका है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट के समय में अवसरों को लाभ उठा सके।
एक बार फिर मंदी ने बढ़ाई दुनिया की टेंशन
सन् 2023 में, आर्थिक मंदी की चर्चाएं व्यापक रूप से हो रही थीं। बड़ी कंपनियों में बड़ी छंटनी के मामले सामान्य हो रहे थे। इस अस्थिरता के दौरान, विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं आम लोगों के जीवन में भी प्रभाव डाल रही थीं। साल 2024 में भी, ऐसे ही संकेत दिखाई दे रहे हैं और विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि में अटकने का खतरा है। इस संकट को हल करने के लिए समुदाय में साझेदारी की आवश्यकता है।
जापान ने हाल ही में मंदी की मार से जूझ रही दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का तमगा हाल ही में खो दिया है। इसके अलावा, जर्मनी भी मंदी के प्रभावों से प्रभावित हो रही है और उसकी अर्थव्यवस्था का हाल भी कुछ ठीक नहीं है। साथ ही, ब्रिटेन की जीडीपी भी लगातार सिकुड़ती हुई दिख रही है।
Japan नहीं रहा तीसरी बड़ी इकोनॉमी : विस्तार से समझें तो दिसंबर तिमाही में जापान की इकॉनमी में 0.4 फीसदी, जबकि सितंबर तिमाही में 3.3 फीसदी की गिरावट आई. लगातार दो तिमाहियों में Japan GDP की गिरावट के चलते वो दुनिया की तीसरी इकोनॉमी के अपने स्थान से खिसककर चौथे नंबर पर आ गया. देश की जीडीपी 4.2 ट्रिलियन डॉलर रह गई.
Germany की जीडीपी सिकुड़ी : जापान के चौथे
पायदान पर खिसकने का फायदा जर्मनी को हुआ और वो 4.5 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया. लेकिन इसका हाल भी कुछ ठीक नहीं है, दरअसल, यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी भी बीते साल मंदी के साये में रही है. 2023 में जर्मनी की जीडीपी 0.3 फीसदी सिकुड़ गई.
Britain का ये है हाल : अब बात अगर ब्रिटेन की तो ये भी मंदी (Recession) की चपेट में नजर आ रहा है. यहां भी दो तिमाहियों से जीडीपी में गिरावट जारी है. ब्रिटेन के ऑफिस ऑफ नेशनल स्टेटिस्टि (ONS) के मुताबिक, जहां सितंबर तिमाही में U GDP में 0.1 फीसदी की गिरावट आई थी, तो वहीं दिसंबर तिमाही में 0.3 फीसदी तक सिकुड़ गई है. ऐसे में दुनिया की टॉप इकोनॉमी में शामिल इस देश को लेकर भी चिंताएं बढ़ गई हैं.
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