सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच वाली याचिका को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय को हाईकोर्ट से मांग करने का सुझाव दिया। उनका कहना था कि यह मांग हाईकोर्ट के पास होनी चाहिए क्योंकि उसके पास इस मामले की विस्तृत जानकारी और विचार करने की शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका को नहीं दायर किया क्योंकि उन्हें लगा कि इस मामले में हाईकोर्ट के संदर्भ में विचार करना उचित होगा। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से मामले की सुनवाई करने की सलाह दी।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के संदेशखाली मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले को हाईकोर्ट से सुनवाई कराने के लिए मांग की जाए। इसका मुख्य कारण हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को लगता हो कि यह मामला हाईकोर्ट के अधिकार और दायित्व में आता है। रिट याचिका क्यों नहीं दायर की गई, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट को लग सकता है कि मामला अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं है या कि वह मामला हाईकोर्ट के अधिकार में अधिक उपयुक्त हो सकता है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से सुनवाई करवाने की मांग की जा सकती है ताकि मामला उचित रूप से और विस्तृत तरीके से सुना जा सके।
बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर मामले की जांच SIT/सीबी से कराने की गुहार लगाई गई थी.
याचिकाकर्ता पक्ष ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने संदेशखाली घटना के बारे में अदालत को अवगत कराते हुए कहा कि उनकी जांच के अनुसार ज्यादातर पीड़ित अनुसूचित जाति वर्ग के हैं।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है, तो आप वहां जाकर सीबीआई जांच की मांग भी कर सकते हैं। अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि मैं मामले का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के बाहर करने की भी गुहार लगा रहा हूं। वहां परिस्थिति बेहद खराब है, इसलिए मामले का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के बाहर किया जाए।
संदेशखाली की तुलना मणिपुर से ना करें
सुप्रीम कोर्ट ने आपको हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया था, जिसका आपने पालन किया। हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और इसके बाद मुख्यमंत्री ने एक दिन बाद बयान दिया कि कोई रेप नहीं हुआ है। वकील अलख ने इसे मणिपुर की तरह का मामला बताया और इसे विस्तार से लिखने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी कि इस मामले को मणिपुर मामले से अलग रखा जाए और हाईकोर्ट की सुनवाई में शामिल होने की अनुमति दी जाए। आपको इस आदेश के अनुसार अर्जी दाखिल करने की इजाजत है।
अलख श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट के दूसरे मामलों के संबंध में यह कहा कि इस बारे में भी अदालत ने सीधा दखल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फिर यह बताया कि आप मणिपुर के इस मामले की तुलना न करें। हाईकोर्ट को भी एसआईटी का गठन करने का अधिकार है। इसलिए, हाईकोर्ट को ही इस मामले के लिए तय करने की सलाह दी जानी चाहिए।
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