उत्तर प्रदेश बीजेेेपी मे लोकसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी को लेकर सरकार और सगंठन की चर्चा चल रही है. पर तार्किक द्रष्टिकोण से देखें तो सरकार और संगठन दोनोंं ही इसके लियेे जिम्मेदार थे . हैरानी की बात ये है कि कोई भी सुधरने को तैयार नहींं है . उत्तर प्रदेश में सरकार और संंगठन में बदलाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में अटकलबाजी का दौर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. जाहिर है कि इसके लिये भाजपा नेताओं कि गतिविधियां ही अधिक उत्तरदायी है . ऐसा लगता है कि लखनउ से लेकर दिल्ली तक किसी को भी पार्टी को ताक पर रख दियेे है . पार्टी यह समझ नहींं पा रही है कि उत्तर प्रदेश में नेत्त्त्व परिवर्तन कि चर्चा गरम रहता है तो इसका सीधा असर आगामी उपचुनावों मंं देखने को मिल सकता हैै . जिस तरह लोकसभा चुनावों के बाद कार्यकर्ता का माॅॅॅरल गिरा है उसका प्रभाव 2027 तक में दिखेेेगा. यदि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों कें भजपा 33 सीट पर ही सिमट गई तो इसके लिये केवल राज्य सरकार को दोष देना सही नहीं है . लोकसभा चुनाव की हार की समीक्षा के लिए बनी कमेटी ने जो रिपोर्ट दी है उसमें भी सरकार और संगठन दोनोंं को जिम्मेदार ठहराया गया हैं . पर हफते भर से पार्टी लाइन लेंथ सही करती नजर नहीं है . सुधरने को कोई तैयार नहीं हैं चाहेे वो सरकार के लोग हो या संगठन के
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