बिजली कंपनी में कॉन्ट्रैक्टर रहे 75 साल के राजेंद्र यादव मौसंबी की खेती कर रहे हैं। 24 साल पहले एक बीघा में 100 पौधों से शुरुआत की। अब 14 बीघा में 1500 से ज्यादा पेड़ हो गए हैं। इससे हर साल करीब 12 लाख से ज्यादा का प्रॉफिट भी हो रहा है। 10 से 12 लोगों को रोजगार भी दे रखा है।
राजेंद्र सिंह मुरैना जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर चैना गांव में रहते हैं। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार राजेंद्र सिंह से मिलवाते हैं। उन्होंने मौसंबी की खेती से इलाके में अलग पहचान बनाई है। राजेंद्र की सफलता देख तीन छोटे भाइयों ने भी मौसंबी की खेती शुरू कर दी। इन्हें भी हर साल 4 से 5 लाख रुपए का प्रॉफिट हो रहा है।
राजेन्द्र सिंह यादव से जानते हैं कि कैसे शुरू की खेती…
’30 साल तक बिजली कंपनी में इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम किया। बिजली लाइनें डालना और सब स्टेशन बनाने का काम था। अब यह काम बेटा विनोद यादव कर रहा है। ठेकेदारी के दौरान इनकम तो अच्छी हो रही थी, लेकिन मन को संतुष्टि नहीं थी। लग रहा था कि प्रकृति से दूर होता जा रहा हूं। फिर एक दिन कारोबार बेटे विनोद सिंह को सौंप दिया। मैंने मौसंबी की खेती करने की ठानी।
साल 2000 में महाराष्ट्र से 100 पौधे लाकर एक बीघा जमीन में लगाए। तीन साल बाद पेड़ों में फल आने शुरू हो गए। पहले साल 80 हजार रुपए की मौसंबी बेची। अगले दो साल तक सवा-सवा लाख रुपए में फसल बेची। फायदा होने लगा, तो पौधों की संख्या बढ़ाता चला गया।
आज 14 बीघा जमीन में 1500 से ज्यादा पेड़ हो गए हैं। इनमें कुछ नींबू के पेड़ भी हैं। पपीता, केला और अनार के भी पेड़ लगाए हैं। पिछले साल 15 लाख की फसल बेची थी। इसमें दो लाख रुपए नींबू के पेड़ों से आमदनी हुई थी।’
बड़े भाई की सफलता देख तीन भाइयों ने भी शुरू की खेती
मैं चार भाइयों में बड़ा हूं। छोटे भाई मुरारीलाल यादव, दीनबंधु यादव और लक्ष्मीनारायण यादव हैं। जब मुझे मौसंबी की खेती में मुनाफा होने लगा, तो तीनों भाइयों ने भी मौसंबी की खेती शुरू कर दी। मुरारीलाल ने 5 बीघा, दीनबंधु ने 4 बीघा और लक्ष्मीनारायण ने 3-4 बीघा में मौसंबी उगाई है। पिछले साल तीनों भाइयों को 4 से 5 लाख रुपए का मुनाफा हुआ। यही नहीं, पड़ोसी मुकेश यादव ने भी मौसंबी के पौधे लगाए हैं।’
वन टाइम इन्वेस्टमेंट है मौसंबी की खेती
‘मौसंबी की खेती में मैंने एक बार 8 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया था। पौधे खरीदकर लाना, तार फेंसिंग कराना, गड्ढे खोदने के लिए मजदूरों को लगाने में पैसे खर्च हुए थे। इसके बाद दोबारा पैसे नहीं लगाने पड़े। अब हर साल अच्छा उत्पादन हो रहा है। खेती-किसानी और प्रकृति से जुड़े हैं, तो अच्छा लग रहा है।’
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