महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय बड़ा उथल-पुथल देखने को मिल रहा है, खासकर जब विधानसभा चुनावों का वक्त नजदीक आ रहा है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। इसी कड़ी में शिवसेना (यूबीटी) के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के हालिया बयान ने सियासी हलचल को और बढ़ा दिया है। ठाकरे ने महाराष्ट्र के शिरडी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए अपने पुराने सहयोगियों पर जमकर निशाना साधा और शिवसेना के विभाजन को लेकर अपनी भावनाएं प्रकट कीं।
ठाकरे ने अपने भाषण में उन नेताओं पर आरोप लगाए जिन्होंने पार्टी के साथ विश्वासघात किया। उन्होंने जनता को याद दिलाते हुए कहा, “जिन्हें हम अपना परिवार मानते थे, उन्होंने ही पीठ में छुरा घोंपा है।” यह बयान सीधे तौर पर शिवसेना के उस गुट की ओर इशारा करता है, जिसने हाल ही में पार्टी से अलग होकर सत्ता में हिस्सा लिया है। ठाकरे ने अपनी भावुक अपील में कहा कि जिन लोगों ने उन्हें धोखा दिया है, वे शिवसेना के विचारधारा और इसके समर्थकों के लिए एक खतरा बने हुए हैं।
अपने संबोधन के दौरान उद्धव ठाकरे ने यह भी साफ कर दिया कि उनका मुख्यमंत्री बनने का कोई व्यक्तिगत सपना नहीं था और न ही अब है। उन्होंने कहा, “मेरा मुख्यमंत्री बनने का सपना ना तब था, ना अब है।” यह बयान उनके उन विरोधियों के जवाब में था, जो मानते हैं कि सत्ता में वापस आने की उनकी मुख्य आकांक्षा है। ठाकरे ने यह भी साफ किया कि वे सत्ता से संन्यास लेने का कोई इरादा नहीं रखते और उनके अनुसार, “मुझे कोई भी सत्ता से बर्खास्त नहीं कर सकता।”
यह बयान एक ओर ठाकरे की दृढ़ता और आत्मविश्वास को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी इशारा करता है कि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। उनके भाषण से स्पष्ट होता है कि शिवसेना (यूबीटी) महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पुरानी ताकत हासिल करने की पूरी कोशिश करेगी, खासकर विधानसभा चुनावों से पहले।
महाराष्ट्र की मौजूदा सियासी स्थिति पर नज़र डालें तो, शिवसेना का विभाजन और उसके बाद की राजनीतिक परिस्थितियां राज्य के भविष्य पर गहरा असर डाल सकती हैं। शिवसेना (यूबीटी) और भाजपा के बीच चल रही यह राजनीतिक खींचतान महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव ला सकती है।
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