हरियाणा में इस समय विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म है, और चुनावी मुकाबले में कई प्रमुख राजनीतिक दल जैसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जननायक जनता पार्टी (जजपा), और इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) शामिल हैं। ऐसे में किसान संगठनों द्वारा “न्याय मार्च” की घोषणा ने सियासी हलचल और भी बढ़ा दी है।
किसानों का यह मार्च 18 सितंबर को हरियाणा के डबवाली गांव से शुरू होने जा रहा है, जिसे भारतीय किसान एकता संघ ने आयोजित किया है। किसान इस मार्च के जरिए अपनी मांगों को जोरदार तरीके से उठाना चाहते हैं, और इसका सीधा असर राज्य के चुनावी समीकरणों पर पड़ने की संभावना है। चुनाव के समय किसानों के इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा दी है, खासकर भाजपा की, जो पहले से ही जाट समुदाय के किसान वोटरों की नाराजगी से जूझ रही है।
यह मार्च ऐसे समय पर हो रहा है जब राज्य में पहले से ही किसान आंदोलन और उनकी समस्याओं को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ पहले भी किसानों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किए थे, और अब यह “न्याय मार्च” उन समस्याओं को फिर से उठाने की कोशिश है, जिन्हें लेकर किसान लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।
किसानों का यह आंदोलन सिर्फ भाजपा के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी चुनौती है। जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोक दल जैसी पार्टियों के सामने भी यह चुनौती है कि वे किसानों को किस हद तक अपनी ओर आकर्षित कर पाती हैं। किसानों के इस कदम से राजनीतिक दलों को अपने चुनावी अभियान में बदलाव करने की जरूरत महसूस हो रही है, क्योंकि किसान वोट बैंक एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
सियासत का कुरुक्षेत्र तैयार है, और यह देखना बाकी है कि किसान अपनी मांगों को लेकर इस चुनाव में कितना प्रभाव डाल पाएंगे।
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