भोपाल:- विकाश मौर्य

बीजेपी का जातीय संतुलन बनाने का प्रयास निश्चित रूप से पार्टी के चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। खासकर जब छत्तीसगढ़ में राजपूत वर्ग से किरण देव सिंह को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, तो यह संकेत देता है कि मध्यप्रदेश में बीजेपी जातीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए नए समीकरणों पर विचार कर सकती है।
मध्यप्रदेश में राजपूत वर्ग के अलावा अन्य समाज के नेताओं को मौका मिलने से पार्टी को विभिन्न जाति-समूहों का समर्थन प्राप्त हो सकता है, जो आगामी चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है। यह संभावनाएं पार्टी के अंदर विभिन्न समूहों के बीच सत्ता-साझेदारी की समझ को और मजबूत करती हैं।
प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में टलने के ये दोनों कारण समझ में आते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की विदेश यात्रा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेताओं की व्यस्तता, दोनों ही घटनाएँ महत्वपूर्ण हैं और पार्टी की रणनीति पर असर डालती हैं। मुख्यमंत्री की विदेश यात्रा से पहले किसी भी तरह का निर्णय लेने में कठिनाई हो सकती है, और दिल्ली विधानसभा चुनाव की व्यस्तता भी पार्टी के संसाधनों और नेताओं का ध्यान बांट रही है।
छत्तीसगढ़ के कारण एमपी में बदले समीकरण:-
बीजेपी का जातीय संतुलन बनाने का प्रयास खासतौर पर क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण रणनीति लगती है। छत्तीसगढ़ में किरण देव सिंह को फिर से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, और यह दिखाता है कि पार्टी जातीय समरसता पर ध्यान दे रही है, जिससे विभिन्न वर्गों के बीच संतुलन बना रहे। इसके कारण मध्यप्रदेश में राजपूत वर्ग से बाहर किसी अन्य समाज के नेता को मौका मिलने की संभावना बन रही है, जिससे पार्टी अधिक सामाजिक समरसता और समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है।
मध्यप्रदेश में इस समय विभिन्न जाति और वर्गों के नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा हो सकती है, और बीजेपी के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह ऐसे नेता को चुनें, जो न केवल पार्टी के लिए प्रभावी हो, बल्कि राज्य में चुनावी लाभ भी दिला सके। पार्टी शायद अब राजपूत वर्ग के अलावा अन्य वर्गों के नेताओं को मौका देने की ओर बढ़ सकती है ताकि हर समाज में पार्टी का विश्वास बढ़े और आगामी चुनावों में जीत की संभावना मजबूत हो।
मध्यप्रदेश में वर्तमान राजनीतिक समीकरणों के तहत, यह तीन प्रमुख नेता—अरविंद सिंह भदौरिया, बृजेन्द्र प्रताप सिंह, और सीमा सिंह जादौन—प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं, और इनकी जातीय और सामाजिक पृष्ठभूमि को देखकर यह माना जा सकता है कि बीजेपी जातीय संतुलन बनाने के लिए हर पहलू पर विचार कर रही है।
जहां तक छत्तीसगढ़ में ठाकुर वर्ग के प्रदेश अध्यक्ष के रिपीट होने का सवाल है, यह मध्यप्रदेश के अंदर भी एक संभावित बदलाव का संकेत दे सकता है। अगर छत्तीसगढ़ में ठाकुर वर्ग के नेता को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है, तो मध्यप्रदेश में ठाकुर वर्ग से बाहर किसी अन्य नेता को अवसर मिलने की संभावना बढ़ सकती है, ताकि राज्य में जातीय संतुलन बनाए रखा जा सके।
अभी तक, बीजेपी राजपूत और अन्य प्रमुख जातियों के बीच संतुलन बनाने के लिए सक्रिय दिखाई दे रही है। लेकिन इस बार पार्टी को यह विचार करना होगा कि कौन सा नेता अन्य जाति-वर्गों के समर्थन को आकर्षित कर सकेगा, और कौन पार्टी की चुनावी स्थिति को मजबूत कर सकता है।
अब जानिए प्रदेश अध्यक्ष की रेस में कौन से नेता शामिल:-
वीडी शर्मा का कार्यकाल अगले महीने 15 फरवरी को पांच साल पूरा होने जा रहा है, और इस स्थिति में यह स्वाभाविक है कि प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर नए समीकरण और प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल का विस्तार होने के बाद, वीडी शर्मा का कार्यकाल भी बढ़ाया गया था, जो यह संकेत देता है कि पार्टी में उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण माना गया है। अब, जबकि उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है, नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए कई नेता अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, यह बीजेपी के भीतर नेतृत्व के बदलाव के संकेत हो सकते हैं।
आधे दर्जन नेता इस समय प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन वीडी शर्मा भी पूरी तरह से सक्रिय हैं और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए पार्टी के भीतर अपना दबदबा बनाए रखे हुए हैं। इस प्रतिस्पर्धा में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा नेता पार्टी के अंदर और बाहर के समीकरणों को सबसे बेहतर तरीके से संभाल सकता है।
किस वर्ग के कौन से नेता प्रदेशाध्यक्ष की रेस में:-
- ब्राह्मण-डॉ नरोत्तम मिश्रा, आलोक शर्मा, अर्चना चिटनीस
- राजपूत- अरविंद भदौरिया, बृजेन्द्र प्रताप सिंह, सीमा सिंह जादौन
- वैश्य – हेमंत खंडेलवाल, सुधीर गुप्ता
- आदिवासी- गजेन्द्र सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, रामलाल रौतेल
- अनुसूचित जाति- प्रदीप लारिया, लाल सिंह आर्य

वैश्य वर्ग से हेमंत खंडेलवाल का नाम:-
मध्यप्रदेश में वर्तमान नेतृत्व का जातीय संतुलन काफी दिलचस्प है, जहां मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ओबीसी वर्ग से, डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल ब्राह्मण और जगदीश देवड़ा अनुसूचित जाति से हैं, वहीं विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर क्षत्रिय समाज से आते हैं। ऐसे में, प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए वैश्य वर्ग से हेमंत खंडेलवाल का नाम सबसे आगे चल रहा है, जो जातीय संतुलन को बनाए रखने की दृष्टि से एक तर्कसंगत कदम हो सकता है।
हेमंत खंडेलवाल का अनुभव और पार्टी में उनके योगदान को देखते हुए, उनका नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए प्रमुख रूप से उठ रहा है। 2007 में बैतूल से सांसद बनने के बाद से उनका राजनीतिक करियर लगातार उन्नति करता रहा है, और वे बीजेपी के प्रदेश कोषाध्यक्ष भी रह चुके हैं। वर्तमान में वे बैतूल से विधायक और कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, जो उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठनात्मक अनुभव को प्रमाणित करते हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का भी हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश अध्यक्ष के लिए पसंदीदा नेता माना जा रहा है, जो पार्टी के अंदर एकता और समर्थन का अच्छा संकेत है। हेमंत खंडेलवाल का वैश्य समाज से आना पार्टी के जातीय संतुलन के लिहाज से सही हो सकता है, और यदि वे प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं, तो यह बीजेपी के लिए रणनीतिक रूप से लाभकारी साबित हो सकता है।

संघ की ओर से गजेन्द्र पटेल का नाम
जेन्द्र सिंह पटेल का नाम प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए संघ की ओर से उठाया जाना, बीजेपी के अंदर उनके बढ़ते प्रभाव और उनकी रणनीतिक भूमिका को दर्शाता है। उनके बारे में यह बात महत्वपूर्ण है कि वे संघ के प्रचारक रह चुके हैं, और बीजेपी में शामिल होने के बाद से उनका कद लगातार बढ़ा है। केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उन्हें चुनाव संचालन राष्ट्रीय पुनर्विचार समिति का सदस्य और छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए पर्यवेक्षक जैसे अहम पदों पर नियुक्त किया जाना उनके संगठनात्मक कौशल और राजनीतिक अनुभव को रेखांकित करता है।
गजेन्द्र सिंह पटेल का संघ से जुड़ा होना बीजेपी के लिए एक सशक्त संघ-समर्थन का संदेश हो सकता है, क्योंकि संघ का प्रभाव बीजेपी के निर्णयों में अक्सर महत्वपूर्ण होता है। इस समय जब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के लिए नए चेहरों की तलाश में है, गजेन्द्र का नाम एक मजबूत विकल्प के तौर पर सामने आ रहा है, और उनका अनुभव और केंद्रीय नेतृत्व के साथ मजबूत संबंध पार्टी को चुनावी मोर्चे पर भी मजबूती दे सकते हैं।
गजेन्द्र पटेल का राजनैतिक सफर
गजेन्द्र सिंह पटेल का राजनीतिक सफर बहुत ही दिलचस्प और प्रभावशाली रहा है। वे इंदौर के महू से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के विस्तारक के रूप में जुड़े हुए थे, और संघ के साथ उनका लंबा जुड़ाव बीजेपी में उनके रणनीतिक और संगठनात्मक कौशल को दर्शाता है। दो बार से खरगोन से सांसद रहना और बीजेपी अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री के तौर पर कार्य करना, गजेन्द्र के प्रभाव और उनके नेतृत्व की क्षमता को साबित करता है।
खरगोन से उनका दो बार सांसद रहना यह दर्शाता है कि वे अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं और स्थानीय राजनीति में उनकी स्वीकार्यता है। अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री के तौर पर उनका कार्य उनके सामाजिक और राजनीतिक विविधता को समझने की क्षमता को भी उजागर करता है, जो पार्टी के अंदर और बाहर अलग-अलग समुदायों के बीच संतुलन बनाने में मदद कर सकता है।
गजेन्द्र पटेल का संघ के साथ गहरा जुड़ाव और बीजेपी में उनके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, यदि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुना जाता है, तो यह पार्टी के भीतर एक मजबूत संगठनात्मक दिशा को प्रोत्साहित कर सकता है। साथ ही, उनका अनुभव आगामी चुनावों में बीजेपी के लिए सकारात्मक भूमिका निभा सकता है।

शिवराज के करीबी आलोक भी रेस में
आलोक शर्मा का नाम बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सामने आना, उनके राजनीतिक अनुभव और पार्टी में उनके प्रभाव को दर्शाता है। भोपाल सांसद होने के साथ-साथ, वे केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं, जो मध्यप्रदेश की राजनीति में एक अहम चेहरा हैं। आलोक शर्मा का यह करीबी रिश्ता शिवराज सिंह चौहान के साथ, उन्हें पार्टी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उपयुक्त बनाता है, खासकर अगर बीजेपी को राज्य में स्थिर नेतृत्व की आवश्यकता हो।
आलोक शर्मा का नगर निगम के मेयर के तौर पर अनुभव और दो बार विधानसभा चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड यह दर्शाता है कि उन्हें राज्य और नगर स्तर पर राजनीतिक दृष्टि से काफी समझ है। इसके अलावा, बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में उनका कार्य अनुभव और पार्टी के संगठन में उनकी मजबूत पहचान इस बात को पुष्ट करती है कि वे एक अनुभवी और रणनीतिक नेता हैं।
आलोक शर्मा के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पार्टी के अंदर और बाहर एक सामंजस्यपूर्ण नेतृत्व देखने को मिल सकता है, खासकर शिवराज सिंह चौहान के करीबी रिश्ते के कारण। इस मामले में आलोक शर्मा का चुनाव बीजेपी के संगठनात्मक और चुनावी दृष्टिकोण से एक मजबूत कदम हो सकता है, क्योंकि वे पार्टी की नीतियों को सही तरीके से लागू करने में सक्षम हो सकते हैं।
अंबेडकर पर केंद्रित राजनीति के चलते एससी को मिल सकता है मौका
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अंबेडकर पर दिए गए बयान के बाद मध्यप्रदेश में राजनीतिक माहौल में तेजी से बदलाव आ रहा है, और कांग्रेस की “जय भीम, जय बापू, जय संविधान” रैली 27 जनवरी को महू में अंबेडकर पर केंद्रित राजनीति को और गरमाएगी। इस मौके पर बीजेपी द्वारा अनुसूचित जाति वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव एक रणनीतिक कदम हो सकता है, खासकर एससी वोटर्स की महत्वपूर्ण संख्या को देखते हुए।
अनुसूचित जाति के नेताओं में पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य और नरयावली विधायक प्रदीप लारिया के नाम प्रमुख रूप से चर्चा में हैं। इन नेताओं का चयन पार्टी को एससी समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद कर सकता है, जो आगामी चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है। खासकर जाटव और अहिरवार समुदाय के नेताओं को मौका देने से पार्टी एक व्यापक सामाजिक आधार तैयार कर सकती है, जिससे एससी वोटर्स का समर्थन आसानी से मिल सकता है।
अगर बीजेपी अनुसूचित जाति के किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाती है, तो यह पार्टी की सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा कदम होगा, जो चुनावी दृष्टिकोण से भी फायदे में साबित हो सकता है। इसके अलावा, पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर संतुलन बनाने के लिए भी यह एक अच्छा कदम हो सकता है, खासकर जब अंबेडकर और संविधान जैसे मुद्दे सामने आ रहे हैं।
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