पाकिस्तान के बारे में यह कहा जाता है कि वहां सेना और सत्ता एक सिक्के के दो पहलू हैं। इसका मतलब है कि सेना और सत्ता के बीच गहरा संबंध है और वे एक दूसरे के बिना नहीं चल सकते। इस तालमेल के कारण, पाकिस्तान में चुनावों का नतीजा या राजनीतिक घटनाओं का परिणाम आमतौर पर सेना की भूमिका के अनुसार होता है। अधिकांश चुनावों में, सेना की प्रभावशाली भूमिका या उसकी प्रतिक्रिया चुनाव परिणामों पर अधिक प्रभाव डालती है। इसलिए, वहां कोई ऐसा चुनाव नहीं होता जिसमें सेना के प्रभाव का कोई न कोई प्रकार का साया न हो।
पाकिस्तान में हाल ही में हुए चुनावों के नतीजे आए हैं। इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) दोनों पार्टियों ने बिना बहुमत के सरकार बनाने का दावा किया है। यह पहली बार है जब निर्दलीय उम्मीदवारों ने इतनी बड़ी संख्या में सीटें जीती हैं।
इस बार की सत्ता की लड़ाई दो पूर्व प्रधानमंत्रियों, इमरान खान और उनके प्रतिद्वंदी के बीच है। इमरान खान, जो कभी सेना के ‘फेवरेट बॉय’ रहे थे, अब उनकी पार्टी पर बैन लगाकर उन्हें चुनाव लड़ने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप, उनके पार्टी के उम्मीदवारों को निर्दलीयों के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने को मजबूर होना पड़ा
पिछले साल, पाकिस्तानी सेना ने नवाज शरीफ पर दांव लगाया था। उन्हें लंदन से पाकिस्तान वापस बुलाया गया, उनके खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को रद्द किया गया, और उनके खिलाफ लगी चुनावी रोक भी हटाई गई।
पाकिस्तान की सेना का सियासी मामलों में प्रभाव इसके इतिहास, समाज, और राजनीतिक व्यवस्था से जुड़ा है। पाकिस्तान की सेना को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख रखने के साथ-साथ, राजनीतिक प्रभाव भी है। इसकी उत्पत्ति और विकास में कई कारक शामिल हैं, जैसे कि मिलिटरी राज, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, और भौगोलिक स्थिति।
1947 में भारत से अलग होने के बाद, पाकिस्तान ने अपनी सेना को विकसित किया, जिसमें भारतीय सेना से विभिन्न रूपों में अलगता आई। पाकिस्तान की सेना का अधिकांश कार्य राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए है, लेकिन इसने अपनी अधिकतम सत्ता को भी राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया है।
इस तरह की सम्बन्धित सेना की बल की विकास के पीछे कई कारण हैं, जैसे कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष, कश्मीर मुद्दा, और अमेरिका और चीन जैसे बाहरी राष्ट्रों के साथ रक्षा सहयोग। इन सभी कारणों के संयोग से पाकिस्तानी सेना ने अपने राजनीतिक और समाजिक प्रभाव को मजबूत किया है, जिससे उसका सत्ता में अधिक प्रभाव आया है।
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं में क्यों हैं अंतर?
भारत की स्वतंत्रता के बाद, पाकिस्तान का अस्तित्व धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में आया। इस समय में दोनों देशों की सेनाएं बढ़ रही थीं। अमेरिकी विशेषज्ञ स्टीवन विल्किनसन ने अपनी पुस्तक में इस दौर के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय सेना को लोकतंत्र की सरकार के अधीन सौंपा। इसके साथ ही, सेना में कमांडर इन चीफ का पद भी खत्म किया गया। यह एक महत्वपूर्ण और सांविधिक परिवर्तन था जो इस नए भारतीय समाज की नींव रखता है।
नेहरू ने समझाया कि फौज के आधुनिकीकरण के लिए थल सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों सेनाओं की अहमियत बराबर होनी चाहिए। इसलिए, तीनों सेनाओं के अलग-अलग चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नियुक्त किए गए। साथ ही, किसी तरह की तख्तापलट की संभावना को नकारते हुए, इन तीनों सेनाओं को रक्षामंत्री के अधीन रखा गया, जो चुनी हुई सरकार के कैबिनेट के तहत काम करता है।
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