दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने मुस्लिम परिवार में बच्चे के गोद लेने और संपत्ति पर उसके अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इसके अनुसार, मुस्लिम समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्ति शरीयत अधिनियम के तहत घोषणा किए बिना बच्चे को गोद ले सकता है और उस बच्चे का संपत्ति पर पूरा अधिकार होगा। अदालत ने यह भी निर्धारित किया कि ऐसा गोद लेना सामान्य कानून के तहत वैध होगा, न कि मुस्लिम पर्सनल लॉ या शरियत कानून द्वारा। फैसले के दौरान एडीजे प्रवीण सिंह ने उक्त बच्चा गोद लेने वाले माता-पिता को वैध बच्चा बनाने का आदान-प्रदान किया है।
इकबाल अहमद ने दरअसल जमीर अहमद के भाई के मृत्युमैत्र के मामले पर जिला अदालत में दायर बंटवारे की सुनवाई करवाई थी। जमीर ने अपने भाई के एक बेटे को गोद लिया था, परंतु इकबाल का दावा था कि शरियत कानून के अनुसार उसके भाई का कोई बेटा नहीं है। उसने संपत्ति पर अधिकार करने के लिए मुकदमे का निपटारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत करने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया और मामले का निपटारा कर दिया।
घोषणा किए बिना दंपति ने गोद लिया था बच्चा
जमीर अहमद और गुलजारो बेगम के बिना घोषणा किए अब्दुल समद (समीर) को गोद लेने के संदर्भ में एडीजे प्रवीण सिंह ने बताया कि शरीयत के बावजूद, एक मुस्लिम जो शरीयत अधिनियम की धारा 3 के तहत घोषणा दायर नहीं की है, वह एक बच्चे को गोद ले सकता है। जस्टिस सिंह ने 3 फरवरी के फैसले में उज्ज्वल किया कि जमीर अहमद की मृत्यु के बावजूद उनका गोद लिए गए बच्चा संपत्ति का वैध उत्तराधिकार है। विधवा और बच्चे को बराबरी में अधिकार मिलेंगे, जैसे कि एक बेटे और पत्नी को पति की संपत्ति में होता है, और इस पर कोई पर्सनल लॉ नहीं चलेगा।
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